बायपास प्रोटीन संपूरक

दुग्ध उत्पादक पशुओं के पेट में चार भाग होते हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण 'रुमेन' है, जहाँ चारा और भूसे का अधिकांश किण्वीकरण होता है। जब हम इन पशुओं को प्रोटीन की खली / मील देते हैं, तब रुमेन में जीवाणुओं द्वारा प्रोटीन का अधिकांश भाग (60-70%) अमोनिया में परिवर्तित हो जाता है। इस अमोनिया का अधिकांश हिस्सा यूरिया के रूप में मूत्र के माध्यम से उत्सर्जित हो जाता है। इस प्रकार खली का एक महत्वपूर्ण भाग जो पशु आहार का सबसे अधिक महंगा हिस्सा होता है, बर्बाद हो जाता है। यदि हम इन प्रोटीन की खलियों को उपयुक्त रासायनिक उपचार करें तो, रूमेन में इनका किण्वन कम किया जा सकता है। यह प्रक्रिया/ उपचार, जो रूमेन में खली के प्रोटीन का किण्वन होने से रक्षा करते हैं, इस तकनीक को बाईपास प्रोटीन तकनीक कहते हैं। संरक्षित खलियों / मील जिसका छोटी आंत में अधिक कुशलता से पाचन हो जाता है और परिणाम स्वरुप दूध उत्पादन के लिए अतिरिक्त प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है। यह अच्छी गुणवत्ता के साथ अधिक दूध का उत्पादन करने के लिए पशुओं को मदद करता है।
एनडीडीबी ने बाईपास प्रोटीन तकनीक को मानकीकृत तथा व्यावसायिक रूप से उपयोग करते हुए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्रोटीन खलियों जैसे कि रेपसीड, सूरजमुखी, मूंगफली, ग्वार और सोयाबीन खली को अच्छी तरह से उपचारित किया है, जिससे उनकी रूमेन मे डीग्रेडेबिलिटी 60-70% से घट कर 25-30% रह जाती है। यह उपचार विशेष रुप से निर्मित वायुरोधित संयंत्र में किया जाता है। उपचारित मील को या तो सीधे तौर पर प्रतिदिन एक किलो प्रति पशु के हिसाब से खिलाया जा सकता है, अथवा इसे पशु आहार में 25 प्रतिशत की सीमा तक शामिल किया जा सकता है और इसे दुग्ध उत्पादन के स्तर के अनुसार प्रति दिन 4-5 किलो की मात्रा तक एक पशु को खिलाया जा सकता है। प्रोटीन खलियों / मील को उपचारित करने की लागत 2.5 से 3.0 ₹ प्रति किलो है, लेकिन दुग्ध उत्पादन में हुई वृद्धि को देखते हुए यह लागत काफी कम है।
बाईपास प्रोटीन खली/ फ़ीड के उत्पादन के लिए बाईपास प्रोटीन संयंत्र स्थापित करने में डेरी सहकारी समितियों और अन्य एजेंसियों को तकनीकी सहायता प्रदान की जा रही है।

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