वन हेल्‍थ कॉन्‍सेप्‍ट – स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी जोखिमों को कम करने का एक वैश्विक दृष्टिकोण: अध्‍यक्ष, एनडीडीबी

 

वन हेल्‍थ कॉन्‍सेप्‍ट – स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी जोखिमों को कम करने का एक वैश्विक दृष्टिकोण: अध्‍यक्ष, एनडीडीबी

05 जून 2020, आणंद: एनडीडीबी परिसर में औषधीय पादप उद्यान के उद्घाटन के दौरान, श्री दिलीप रथ, अध्‍यक्ष, एनडीडीबी ने सभी को आयुर्वेद का उपयोग करने के लिए वेदों से ज्ञान प्राप्‍त करने तथा हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाई जाने वाली हमारी प्राचीन परम्पराओं को पुनर्जीवित करने की सलाह दी । श्री रथ ने वन हेल्‍थ कॉन्‍सेप्‍ट के बारे में भी जानकारी दी, जिसमें मानवों, पशुओं, पेड़-पौधों एवं उनके साझे वातावरण के मध्‍य अंतरसंबंध को महत्‍व देते हुए स्‍वास्‍थ्‍य सूचकांकों को अनुकूलित करने के लिए सहयोगात्‍मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया जाता है । उन्‍होंने कहा, “आइए हम इस विश्‍व पर्यावरण दिवस पर प्रकृति से जुड़ें ताकि हमारी भावी पीढ़ियों को सुरक्षित एवं स्वस्थ धरती विरासत में मिले ।” एनडीडीबी के कर्मचारियों ने पौधे लगाए और हरित क्षेत्र का विस्तार करने का वचन दिया।

एनडीडीबी का यह उद्यान विभिन्‍न औषधीय पादपों पर जागरूकता पैदा करेगा, जिसका उपयोग आम बीमारियों की रोकथाम करने के लिए किया जा सकता है । प्रत्‍येक पौधे के लिए क्‍यूआर कोड प्रदान किया गया है – जिसे स्‍कैन करने पर मानवों के लिए आयुष की “आयुर्वेदा ऑफरिंग – हर्बल हीलिंग” पुस्‍तक तथा पशुओं के लिए ईवीएम पुस्तिका के अनुसार जानकारी उपलब्‍ध होती है ।

बाद में, श्री रथ, जो इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद (इरमा) के अध्यक्ष भी हैं, ने निदेशक, इरमा, शिक्षकों और अन्य स्टाफ सदस्यों के साथ इरमा परिसर में पौधे लगाए ।

श्री रथ ने कहा कि इस बात की आशंका बढ़ी है कि विषम जलवायु परिस्थितियों के चलते ग्रामीण परिवारों की आजीविका पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि इसके कारण दुधारू पशुओं की उत्‍पादकता एवं दूध उत्‍पादन प्रभावित हो सकता है । जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों को कम करने के लिए, विभिन्‍न पहल में सभी हितधारकों की भागीदारी को बढ़ाने की आवश्यकता है । जैसे कि देशी नस्‍लों को बढ़ावा देना, उपयुक्‍त चारा किस्‍मों को प्रचारित-प्रसारित करना, जलवायु सहायक पशुपालन प्रक्रियाओं को अपनाना, रोगों के आयुर्वेदिक उपचार को बढ़ावा देना, कोल्‍ड चेन को बढ़ावा देना इत्‍यादि ।

अध्‍यक्ष, एनडीडीबी ने बताया कि वैश्विक स्‍तर पर मानवों, पशुओं और पर्यावरण के सुरक्षित एवं स्‍वस्‍थ्‍य सह-अस्तित्‍व की आवश्‍यकता पर बल दिया जा रहा है । ओआईई अनुमानों के अनुसार, लगभग 60% मानव संक्रामक रोग जूनोटिक (पशु जन्‍य) हैं और 75% संक्रमण पशुओं से मानवों में होता है । हाल ही में, कोविड 19 महामारी वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य संकट के तौर पर उभरी है । मानव स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी इस जोखिम को कम करने के लिए पशु से उत्पन्न जूनोटिक बीमारियों को नियंत्रित करना सर्वोच्‍च प्राथमिकता है ।

इनके अलावा, पशु रोगों के उपचार हेतु एंटी बायोटिक के अंधाधुंध उपयोग के चलते पूरे विश्‍व तथा हमारे देश दोनों के लिए एंटी माइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस (एएमआऱ) एक अदृश्‍य महामारी का शक्ल अख्तियार करता जा रहा है । हमारा यह दृढ़ विश्‍वास है कि इस गंभीर समस्‍या का समाधान वैकल्पिक उपचार रणनीतियों जैसे पशु आयुर्वेद पर आधारित एथनो वेटनरी मेडिसीन (ईवीएम) को बढ़ावा देने में निहित है जिससे अनेक रोगों (थनैला, ब्रूसेलोसिस इत्‍यादि) का उपचार किया जा सकता है । इसके उपयोग से एएमआर की घटनाओं में कमी आएगी । हमारे देश के बहुसंख्‍यक डेरी किसानों के लिए पशु चिकित्‍सक अथवा उपचार मूल्‍य का वहन कर पाना कठिन होता है, जब उनके पशु बीमार हों । अनेक आम पशु रोगों के उपचार हेतु ईवीएम में औषधीय पादपों, जड़ी-बूटियों, मसालों तथा परम्‍परागत ज्ञान को उपयोग में लाया जाता है । एनडीडीबी द्वारा देश के 10 से अधिक राज्‍यों में विभिन्‍न दूध उत्‍पादक संस्‍थाओं के माध्‍यम से ईवीएम को तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है ।