सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी)
भ्रूण प्रत्यारोपण
इसे बहु डिम्बक्षरण एवं भ्रूण प्रत्यारोपण (एमओईटी) तकनीक कहा जाता है, इसका उपयोग मादा डेरी पशुओं के प्रजनन दर में वृद्धि करने के लिए प्रयोग किया जाता है । आम तौर पर, एक वर्ष में एक बेहतर मादा डेरी पशुओं से एक बछड़ा/बछड़ी प्राप्त कर सकते हैं । लेकिन एमओईटी प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, एक गाय/भैंस से एक वर्ष में 10-20 बछड़ें/बछिया प्राप्त कर सकते हैं । एक श्रेष्ठ गाय/भैंस में बहु डिम्बक्षरण के लिए एफएसएच हार्मोन का प्रयोग किया जाता है। हार्मोन के प्रभाव से, मादा पशु सामान्य रूप से उत्पादित एक अंडाणु के बजाय कई अंडाणु उत्पन्न करती है। इस्टृस (गर्मी) के दौरान बहु डिम्बक्षरित मादा पशु का 12 घंटे के अंतराल पर 2-3 बार कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है और पुनः विकासशील भ्रूणों को प्राप्त करने के लिए, कृत्रिम गर्भाधान के बाद एक मीडियम की सहायता से 7वें दिन गर्भाशय से निकाल दिया जाता है। भ्रूणों को एक विशेष फिल्टर में फ्लशिंग मीडियम में एकत्र किया जाता है और फिर माइक्रोस्कोप की सहायता से भ्रूण की गुणवत्ता मूल्यांकन किया जाता है। अच्छी गुणवत्ता के भ्रूणों को भविष्य में प्रत्यारोपण के लिए या तो हिमिकृत कर संरक्षित किया जाता है या फिर उसे पशु के गर्मी में लाने की तारीख से 7वें दिन प्राप्तकर्ता पशुओं में ताजा प्रत्यारोपित किया जाता है। इस प्रकार, एक श्रेष्ठ डेरी पशु से एक वर्ष में कई बछड़ों/बछड़ियों का उत्पादन किया जा सकता है।
एनडीडीबी ने 1987 में साबरमती आश्रम गौशाला (एसएजी) बीडज में केंद्रीय भ्रूण प्रत्यारोपण प्रयोगशाला की स्थापना करके देश के पहले भ्रूण प्रत्यारोपण प्रौद्योगिकी (ईटीटी) परियोजना की शुरुआत की थी। इस परियोजना को जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 5 वर्षों (अप्रैल 1987-मार्च 1992) के लिए वित्त पोषित किया गया था। इस परियोजना के अंतर्गत एनडीडीबी ने एसएजी बीडज में एक मुख्य ईटी प्रयोगशाला और सीएफएसपी एंड टीआई, हेसारघट्टा (कर्नाटक), एबीसी, सालौन (उत्तर प्रदेश), श्री नासिक पंचवटी पंजरापोल, नासिक (महाराष्ट्र) और भैंस प्रजनन केंद्र, नेकरीकालू (आंध्रप्रदेश) में चार क्षेत्रीय ईटी प्रयोगशाला की स्थापना की । एनडीडीबी ने पूरे देश में 14 राज्य ईटी केंद्रों की स्थापना करने में भी सहयोग दिया।
एसएजी ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है और अब तक, 14388 जीवनक्षम भ्रूणों और 755 बछड़ों/बछियों का उत्पादन किया है, जो देश के किसी भी संस्था द्वारा उत्पादित सबसे अधिक संख्या है । इनमें से 1026 भ्रूण देशी पशु नस्लों के हैं, जिनमें से 122 बछड़ों/बछियों का जन्म हुआ है। इनके अलावा, भैंस की नस्लों के लगभग 3000 भ्रूण भी तैयार किए गए हैं। परियोजना के अंतर्गत वर्ष 1991 में हिमिकृत भ्रूण से भारत में पहले भैंस की बछिया का जन्म हुआ था।
इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रौद्योगिकी
इसे ओवम पिक-अप और इन विट्रो भ्रूण उत्पादन (ओपीयू-आईवीईपी) प्रौद्योगिकी भी कहा जाता है, श्रेष्ठ मादा जर्मप्लाज्म की अधिक शीघ्र गुणन की यह एक आधुनिक प्रजनन प्रौद्योगिकी है । एमओईटी प्रौद्योगिकी के उपयोग से एक वर्ष में एक श्रेष्ठ मादा डेरी पशु से 10-20 बछड़ों/बछियों का उत्पादन किया जा सकता है। परंतु, ओपीयू-आईवीईपी तकनीक का इस्तेमाल करके गाय/भैंस से वर्ष में 20-40 बछड़ों/बछियों का उत्पादन किया जा सकता है । एनडीडीबी ने भारतीय डेरी किसानों के लिए इस प्रौद्योगिकी को किफायती बनाने के एक अंतिम लक्ष्य मद्देनज़र मार्च 2018 में अनुसंधान और विकास और प्रशिक्षण प्रयोजनों के लिए आणंद में एक अत्याधुनिक ओपीयू-आईवीईपी की सुविधा स्थापित की है। इस प्रौद्योगिकी की जानकारी प्राप्त करने के लिए, एनडीडीबी ने एम्ब्रापा डेरी कैटल, ब्राजील के साथ सहयोग किया है। अब, यह सुविधा तकनीक का फायदा उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
एनडीडीबी ने अब तक सेक्सड वीर्य अथवा पारंपरिक वीर्य का उपयोग करके 800 से अधिक पशु के आईवीएफ भ्रूण का उत्पादन किया है और ताजा और हिमिकृत आईवीएफ भ्रूण से 50 से अधिक पशु गाभिन हुए हैं और आईवीएफ से कई बछड़ों/बछड़ियों का उत्पादन किया गया है । 22 ओपीयू से एक गिर गाय ने 135 भ्रूणों का उत्पादन किया, जिनमें से औसतन 26.7 अंडाणु/सेशन और 6.13 जीवनक्षम भ्रूण/सेशन उत्पादित हुए थे । 16 गर्भधारण की पुष्टि हुई हैं और उससे 10 बछड़ों/बछड़ियों अब तक पैदा हो चुके हैं।
एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य, भैंसों के लिए इस प्रौद्योगिकी का मानकीकरण और अनुकूलन करना है क्योंकि भैंसों पर इसमें प्रौद्योगिकी में बहुत कम काम हुआ है।
इस तकनीक का उपयोग करके इन विट्रो पद्धति से अर्थात् गर्भ/गर्भाशय के बजाय प्रयोगशाला के अंदर भ्रूणों का उत्पादन किया जाता है । ओपीयू-आईवीईपी की प्रक्रिया के दौरान, अल्ट्रासाउंड की मदद से एस्पीरेशन उपकरण के द्वारा सर्जिकल तरीका अपनाए बिना ओवरियन फॉलिकल से भ्रूणों को एकत्रित किया जाता है। फॉलिकल कंटेंट को एकत्र करने के लिए एक वैक्यूम सिस्टम का उपयोग किया जाता है। अंडाशय से फॉलिकल एकत्रित होने के बाद, एकत्रित फॉलिकल तरल पदार्थ और अंडाणु पिक-अप मीडियम को अतिरिक्त तरल पदार्थ, रक्त और सेल डेब्रिस को निकालने के लिए उसे एक उपयुक्त फिल्टर के माध्यम से प्रवाहित किया जाता है। फिर उस तरल पदार्थ को पेट्री डिश में डाला जाता है और माइक्रोस्कोप की सहायता से अंडो की खोज की जाती है। आगे की प्रक्रिया के लिए क्यूमुलस सेल की परतों के आधार पर अंडो का चयन किया जाता है। चयनित अंडाणुओं को 20-22 घंटे के लिए विट्रो मेचुरेशन माध्यम में विशेष CO2 इनक्यूबेटर के अंदर धो कर इनक्यूबेटेड किया जाता है। इस प्रक्रिया को इन विट्रो मेचुरेशन (आईवीएम) कहा जाता है। 20-22 घंटे के बाद, मेचुरेशन की गुणवत्ता के लिए माइक्रोस्कोप की मदद से फिर से अंडाणुओं का मूल्यांकन किया जाता है। फिर परिपक्व अंडाणुओं को एक ही इनक्यूबेटर में 18 घंटे के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन माध्यम में प्रोसेस्ड जाइगोट्स के साथ इनक्यूबेटेड किया जाता है। इस प्रक्रिया को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) कहा जाता है। आईवीएफ करने के बाद सात दिनों तक एक विशेष मिश्रण के गैस इनक्यूबेटर में इन विट्रो कल्चर मीडिया में इनक्यूबेशन करते है और उसे धोने के बाद संभावित जाइगोट का विकास हुआ । इस प्रक्रिया को इन विट्रो कल्चर (आईवीसी) कहा जाता है। पारंपरिक भ्रूण प्रत्यारोपण कार्यक्रमों के समान, माइक्रोस्कोप की मदद से भ्रूण की गुणवत्ता का आकलन किया जाता है और उत्तम गुणवत्ता के भ्रूण हिमिकृत किए जाते हैं या उपयुक्त प्राप्तकर्ता/सरोगेट पशुओं में प्रत्यारोपित किए जाते हैं जो सात दिन पहले गर्मी में आए थे।
सेक्स्ड सीमन (लिंग निर्धारित वीर्य) प्रौद्योगिकी:
जिस वीर्य से इच्छित लिंग के संतानों अर्थात् मादा अथवा नर संतानों के उत्पादन किया जाता है उसे सेक्स्ड सीमन (लिंग निर्धारित वीर्य) के रूप में जाना जाता है । वर्तमान में उपलब्ध प्रौद्योगिकियां 80-90 प्रतिशत शुद्धता के साथ सेक्स्ड सीमन का उत्पादन करने में सक्षम हैं । इस तकनीक को अपनाकर डेरी किसान वांछित लिंग की संतान पैदा कर सकते हैं और अवांछित आवारा नर पशुओं के खतरे को कम कर सकते हैं । इस तकनीक की पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सकता है यदि कई दाता (डोनर) पशुओं से अंडाणुओं के रूप में सेक्स्ड एम्ब्रायो के उत्पादन के लिए आईवीएफ तकनीक के साथ इसे जोड़कर सिंगल सेक्स्ड सीमन डोज का उपयोग कर निषेचित किया जाए।
ओपीयू-आईवीईपी प्रौद्योगिकी पर प्रशिक्षण:
ओपीयू-आईवीईपी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षित जनशक्ति का एक पूल तैयार कर देश में इस प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है ताकि प्रौद्योगिकी का व्यापक स्तर पर उपयोग किया जा सके । भारत सरकार अपनी प्रमुख योजना राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम) के अंतर्गत देश भर में लगभग 30 ओपीयू-आईवीईपी सुविधाओं की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है ताकि किसानों के घर-घर तक इस प्रौद्योगिकी को पहुंचाया जा सके।
एनडीडीबी डेरी पशुओं के आनुवंशिक सुधार में लगे विभिन्न संस्थाओं द्वारा नामित पशु चिकित्सकों के लिए ओपीयू-आईवीईपी प्रौद्योगिकी पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आणंद में एनडीडीबी परिसर में ऑन डिमांड आयोजित किया जाता है। चूंकि यह एक कौशल विकास कार्यक्रम है, इसलिए प्रत्येक प्रतिभागी को पर्याप्त "हैंड्स-ऑन" प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, एक बैच में केवल चार व्यक्तियों को प्रवेश दिया जाता है। इस आधुनिक सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी) की जानकारी प्राप्त करने के लिए, एमओईटी और/अथवा डेरी पशु प्रजनन प्रबंधन का अनुभव रखने वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाती है । प्रशिक्षण कार्यक्रम में थ्योरी और प्रैक्टिकल सेशन होते हैं। एनडीडीबी के विशेषज्ञों के साथ आणंद कृषि विश्वविद्यालय, आणंद और कामधेनु विश्वविद्यालय, गांधीनगर के प्रसिद्ध प्रोफसरों द्वारा थ्योरी सेशन का संचालन किया है । एनडीडीबी द्वारा प्रैक्टिकल सेशन का समन्वय किया जाता है।
इसके अलावा, प्रशिक्षण के बाद सहायक प्रशिक्षक के प्रयोगशाला की सफल स्थापना और विभिन्न प्रोटोकॉलों के मानकीकरण के लिए प्रशिक्षुओं को निरंतर मार्गदर्शन देते है और समस्या निवारण करते हैं। एनडीडीबी द्वारा प्रशिक्षित विभिन्न संस्थाओं के कई प्रशिक्षुओं ने सफलतापूर्वक प्रयोगशाला की स्थापना की है, आईवीएफ भ्रूण का उत्पादन किया है और कई गर्भधारण भी किए हैं ।