एनडीडीबी पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में डेरी फार्मिंग का सुदृढ़ीकरण कर रही है
एनडीडीबी पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में डेरी फार्मिंग का सुदृढ़ीकरण कर रही है
आणंद, 29.10.2020: राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में डेरी सहकारिताओं में अगली बड़ी वृद्धि की उम्मीद कर रहा है । एनडीडीबी पूर्वी एवं पूर्वोत्तर के झारखंड, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, सिक्किम एवं नागालैंड राज्यों के कुछ अति पिछड़े क्षेत्रों में डेरी विकास की गतिविधियों से जुड़ी हुई है । इस सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का प्रमुख कारण असामान्य जलवायु परिस्थितियां एवं बेहतर आजीविका के अवसरों का अभाव है । इन विषम परिस्थितियों में किसानों के लिए पशुधन ही एकमात्र आशा की किरण है ।
झारखंड दूध महासंघ का प्रबंधन:
एनडीडीबी झारखंड दूध महासंघ (जेएमएफ) का प्रबंधन करना निरंतर जारी रखेगी क्योंकि हाल ही में झारखंड की कैबिनेट ने एनडीडीबी एवं जेएमएफ के मध्य एमओयू को 31 मार्च 2024 तक बढ़ाने को अनुमोदित किया है । झारखंड सरकार के माननीय कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री श्री बादल पत्रलेख ने एनडीडीबी की निष्पक्ष एवं पारदर्शी कार्य पद्धति पर अपना विश्वास व्यक्त किया है और एनडीडीबी के विकास संबंधी दृष्टिकोण की सराहना की है । आगे, उन्होंने कहा कि डेरी क्षेत्र बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में देश के अन्य भागों के स्थानीय लोगों के पलायन को रोकने में भी मदद करेगा ।
श्री दिलीप रथ, अध्यक्ष, एनडीडीबी ने कहा कि एनडीडीबी द्वारा प्रबंधित झारखंड दूध महासंघ (जेएमएफ) ने झारखंड के दूध उत्पादकों को एक पारदर्शी एवं गुणवत्ता पर आधारित दूध संकलन प्रणाली उपलब्ध कराई है जिससे उन्हें संगठित दूध प्रसंस्करण क्षेत्र की व्यापक पहुंच मिल सकेगी । डेरी बोर्ड के प्रयासों से डेरी उद्योग का सुदृढ़ीकरण हुआ है और दूध उत्पादकों को लाभकारी मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित की गई है ।
श्री रथ ने यह बताया कि एनडीडीबी द्वारा शुरू किए गए इनोवेटिव उपायों से इस बात की गारंटी है कि झारखंड के शहरी क्षेत्रों से मिलने वाला धन ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा जाता है और इसके द्वारा डेरी के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार होता है । सहकारिताओं के सदस्यों के वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए हैं । वर्तमान में, 100% दूध उत्पादक सीधे अपने बैंक खाते में भुगतान प्राप्त करते हैं ।
1 अप्रैल 2014 से महासंघ के प्रबंधन का कार्यभार संभालते हुए एनडीडीबी ने अप्रैल 2014 से महासंघ का प्रबंधन करने के लिए अपनी टीम तैनात की । वर्तमान में, झारखंड के 15 जिलों अर्थात रांची, रामगढ़, लोहारदगा, खुंटी, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, देवघर, धनबाद, पलामू, गढ़वा, चत्रा, लातेहार, बोकारो एवं गोड्डा में महासंघ संचालित हो रहा है । 2019-20 में इन 15 जिलों से वार्षिक औसत खरीद लगभग 117.52 हजार किग्रा प्रतिदिन और बिक्री लगभग 102.99 हजार लीटर प्रतिदिन के आस-पास रही है। इसके अलावा, विभिन्न अन्य दूध के उत्पादों जैसे दही, मीठी दही, पनीर, घी, लस्सी, पेडा और खीर मिक्स की भी बिक्री की गई ।
पिछले 7 वर्षों के दौरान रूझानों (ट्रेंड) की एक झलक
अवधि |
क्रियाशील एमपीपी (सं.) |
किसान सदस्य |
किसानों को किया गया भुगतान (करोड़ रू. में) |
दूध संकलन (हजार किग्रा प्रतिदिन) |
दूध की बिक्री (हजार लीटर प्रतिदिन) |
2013-14 |
160 |
1753 |
लागू नहीं |
11.48 |
11.09 |
2014-15 |
348 |
4318 |
16.76 |
21.09 |
23.91 |
2015-16 |
410 |
8518 |
45.35 |
44.85 |
36.74 |
2016-17 |
480 |
15272 |
68.57 |
68.16 |
53.76 |
2017-18 |
554 |
19259 |
100.95 |
97.20 |
81.26 |
2018-19 |
562 |
20553 |
129.24 |
125.17 |
86.02 |
2019-20 |
630 |
19999 |
124.66 |
117.52 |
102.99 |
प्रसंस्करण बुनियादी ढांचा: झारखंड दूध महासंघ में 4 डेरी संयंत्र (रांची, देवघर, कोडरमा एवं लातेहार) क्रियाशील हैं जिनकी कुल स्थापित क्षमता 140 हजार लीटर प्रतिदिन है तथा होटवार, रांची में एक 50 मीट्रिक टन प्रतिदिन का पशु आहार संयंत्र है । झारखंड सरकार ने राज्य में तीन नए डेरी संयंत्रों के निर्माण, स्थापना एवं प्रबंधन हेतु एनडीडीबी से अनुरोध किया है जिनका एनडीडीबी द्वारा टर्नकी के आधार पर प्राथमिकता से प्रबंधन किया जा रहा है
चालू परियोजनाएं
क्रम सं. |
डेरी परियोजना का नाम |
क्षमता |
परियोजना लागत (करोड़ रू. में) |
पूर्णता की समय सीमा |
1 |
सारथ, देवघर |
50 हलीप्रदि से 100 हलीप्रदि तक विस्तार योग्य |
28.00 |
मार्च 2021 |
2 |
साहेबगंज |
50 हलीप्रदि से 100 हलीप्रदि तक विस्तार योग्य |
34.00 |
जून 2021 |
3 |
पलामू |
50 हलीप्रदि से 100 हलीप्रदि तक विस्तार योग्य |
28.00 |
सितंबर 2021 |
इन तीन संयंत्रों के अलावा, होटवार में उत्पाद डेरी संयंत्र तथा जमशेदपुर एवं गिरिडीह में 50 हलीप्रदि (100 हलीप्रदि तक विस्तार योग्य) के दो डेरी संयंत्रों के निर्माण के बारे में झारखंड सरकार के साथ बातचीत की जा रही है । इन नए डेरी संयंत्रों को जोड़ने के बाद, 2024 तक कुल दूध प्रसंस्करण की क्षमता बढ़कर लगभग 5 लाख लीटर प्रतिदिन हो जाएगी । जेएमएफ की दूध प्रबंधन क्षमता भी 5 लाख लीटर प्रतिदिन तक बढ़ जाएगी । इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे और झारखंड दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा । इसके अलावा, नई डेरियों के निर्माण से ताजा और प्रसंस्कृत दूध एवं दूध के उत्पाद उसके मूल्यवान उपभोक्ताओं को प्राप्त करने में मदद मिलेगी । जेएमएफ पशु चिकित्सा, स्वास्थ्य की देखभाल और चारे से संबंधित गतिविधियों के साथ-साथ डेरी उद्योग में हुए नवीन इनोवेशन पर किसानों को प्रशिक्षित करने में निरंतर सहयोग भी दे रहा है ।
पूर्वोत्तर (असम, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड, सिक्किम) में डेरी सहकारिताओं का विकास
वामूल का कायाकल्प: असम सरकार ने एनडीडीबी को पश्चिम असम सहकारी दूध संघ (वामूल), जो बंद होने की कगार पर था, को प्रबंधित करने का अनुरोध किया था । अप्रैल, 2008 में जब एनडीडीबी ने इसका प्रबंधन संभाला था, संघ एक डेरी सहकारी समिति से केवल 300 किग्रा दूध का संकलन कर रहा था । इसके डेरी संयंत्र को अगस्त 2008 में नवीनीकृत करके पुन: चालू किया गया था । एनडीडीबी ने वामूल, जिसे आमतौर पर पूरबी के रूप में जाना जाता है, का प्रबंधन करना निरंतर जारी रखा है, जो खुद को असम के प्रमुख डेरी ब्रांड के रूप में तेजी से स्थापित कर रहा है ।
वर्ष 2018-19 के दौरान, वामूल 280 दूध संकलन केंद्रों के माध्यम से लगभग 656 गांवों को शामिल करते हुए लगभग 13000 डेरी किसानों के साथ जुड़ा हुआ था, जिन्होंने 30123 किग्राप्रदि के औसत दूध संकलन की सूचना दी थी । एनडीडीबी दूध संकलन, प्रसंस्करण, विपणन एवं प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण की गतिविधियों हेतु तकनीकी एवं जनशक्ति सहयोग उपलब्ध करा रही है । एनडीडीबी द्वारा प्रबंधित वामूल दूध संकलन एवं विपणन की गतिविधियों में निरंतर वृद्धि दर्ज कर रहा है ।
नागालैंड, मणिपुर एवं त्रिपुरा में डेरी विकास हेतु बेंचमार्क सर्वेक्षण एवं डीपीआर प्रस्तुति: नागालैंड राज्य डेरी सहकारी महासंघ लि., मणिपुर दूध उत्पादक सहकारी संघ लि. तथा त्रिपुरा के गोमती सहकारी दूध उत्पादक संघ लि. के अनुरोध पर बेंचमार्क सर्वेक्षण आयोजित किए गए और नागालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा में दूध उत्पादन की क्षमता का पता लगाने के लिए रिपोर्टें तैयार की गईं । मणिपुर के चार जिलों अर्थात चांदेल, कक्किंग, तमेंगलोंग तथा उखरूल के अंतर्गत आने वाले बारह गांवों का सर्वेक्षण किया गया । नागालैंड के पाँच जिलों अर्थात फेक, दीमापुर, कोहिमा, मोकोकचुआंग तथा पेरेन में सर्वेक्षण आयोजित किए गए ।
इसी प्रकार, त्रिपुरा के पाँच जिलों अर्थात पश्चिम जिला, खोवाई जिला, सिपाहीजाला जिला, गोमती जिला तथा दक्षिण जिला में सर्वेक्षण किए गए । एनडीडीबी ने भारत सरकार की एनपीडीडी योजना के अंतर्गत वित्त पोषण प्राप्त करने में गोमती दूध संघ को सहयोग भी दिया था । भारत सरकार ने इस दूध संघ को राशि रू. 22.06 करोड़ की स्वीकृति दी ।
सिक्किम में लोकप्रिय दूध संघ: पूर्वोत्तर में सिक्किम दूध संघ की पहचान लोकप्रिय दूध संघ के रूप में की गई है । एनडीडीबी के अधिकारियों की बहु-विषयक टीम ने इस दूध संघ का दौरा किया और भविष्य में इस दूध संघ के आगे के विकास हेतु मौजूदा स्थिति और संभावित कार्रवाई पर प्रारंभिक चर्चा की । सिक्किम, मणिपुर, मिजोरम एवं गोमती दूध संघों को सहकारिता के संचालन पर सतत सहयोग/मार्गदर्शन दिया जा रहा है ।
असम, मणिपुर, सिक्किम एवं त्रिपुरा में आयुर्वेदिक वेटनरी मेडिसीन को उपयोग में लाया जाना: किसानों को न्यूनतम लागत पर कई बीमारियों की रोकथाम में सहयोग देने के उद्देश्य से पूर्वोत्तर में एवीएम को प्रोत्साहित किया गया था । एनडीडीबी, कोलकाता में आयुर्वेदिक वेटनरी पद्धतियों पर एक कार्यशाला आयोजित की गई थी और असम, मणिपुर, सिक्किम एवं त्रिपुरा राज्य के प्रतिभागियों ने इसमें भाग लिया था ।
पशु उत्पादकता एवं स्वास्थ्य के लिए सूचना नेटवर्क (इनाफ): डेरी पशुओं के प्रजनन एवं स्वास्थ्य से संबंधित सूचनाएं संग्रहीत करने के लिए एनडीडीबी पूर्वोत्तर में इनाफ के क्रियान्वयन में सहयोग दे रही है । एनडीडीबी इनाफ पर आवश्यक प्रशिक्षण एवं अभिमुखन उपलब्ध कराती है । वर्तमान में, सभी जिलों के सभी गांवों को इनाफ के अंतर्गत शामिल किया गया है ।
अध्यक्ष, एनडीडीबी ने कहा कि जिन क्षेत्रों में सहकारिताओं का गठन नहीं किया गया है तथा जिन क्षेत्रों में वर्तमान सहकारिताओं की क्षमताओं से अधिक की आवश्यकता है डेरी बोर्ड उत्पादक स्वामित्व वाली संस्थाओं को सहयोग प्रदान करेगा । एनडीडीबी की अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं प्रोफेशनल प्रबंधन सेवाओं द्वारा समर्थित सहकारिताओं को अपनी पूरी क्षमताओं का एहसास करने के लिए निर्देशित किया जाएगा ।