एनडीडीबी की विदर्भ एवं मराठवाड़ा डेरी विकास परियोजना जीवन में बदलाव ला रही है: अध्यक्ष, एनडीडीबी
एनडीडीबी की विदर्भ एवं मराठवाड़ा डेरी विकास परियोजना जीवन में बदलाव ला रही है: अध्यक्ष, एनडीडीबी
आणंद, 10 नवंबर 2020: राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड, विदर्भ एवं मराठवाड़ा डेरी विकास परियोजना (वीएमडीडीपी) को क्रियान्वित करने के लिए महाराष्ट्र सरकार के साथ कार्यरत है जिससे महाराष्ट्र के विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्रों के छोटे एवं सीमांत डेरी किसानों के जीवन में बदलाव आ रहा है । एनडीडीबी की विभिन्न पहल डेरी किसानों की परेशानी को कम करने दिशा में आशा की किरण के रूप में आई है जिससे उपभोक्ता मूल्य का उचित शेयर किसान को उपलब्ध होने से 91,000 से अधिक किसानों की आय में वृद्धि हुई है ।
श्री दिलीप रथ, अध्यक्ष, एनडीडीबी ने कहा, “विदर्भ एवं मराठवाड़ा सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र रहे हैं जिसके कारण यहां कृषि में कठिनाई होती है; अत: ऐसी विषम जलवायु परिस्थितियों में डेरी उद्योग किसानों की आजीविका का अतिरिक्त स्रोत बन सकता है । इस कार्य को आगे बढ़ाते हुए एनडीडीबी ने अपनी सहायक कंपनी मदर डेरी के माध्यम से दूध संकलन बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है जिससे इस क्षेत्र के किसानों को बेहतर आय उपलब्ध कराकर ग्रामीण समृद्धि लाने के व्यापक उद्देश्य में सहयोग दिया जा सके ।‘’
विदर्भ एवं मराठवाड़ा के सूखा संभावित क्षेत्रों में डेरी विकास की शुरूआत करने के लिए एनडीडीबी एवं महाराष्ट्र सरकार ने 2013 में एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए जिससे कि डेरी को किसानों की दीर्घकालीन आय का स्रोत बनाया जा सके और दूध उत्पादकों की गरीबी को कम किया जा सके । एमडीएफवीपीएल ने नागपुर डेरी संयंत्र, जिसकी 2 लाख लीटर प्रतिदिन दूध प्रसंस्करण करने की क्षमता है, का नवीनीकरण किया है ।
इस परियोजना के अंतर्गत, 1,454 दूध पूलिंग केंद्रों (एमपीपी) पर प्रतिदिन औसतन 1,85,000 लीटर दूध संकलित किया जा रहा है और लगभग 40 शहरों में 2,350 दूध बूथों के फ्रेंचाइजी विक्रेताओं एवं खुदरा विक्रेताओं को उत्पादों की आपूर्ति की जा रही है । वर्तमान में, 10 जिलों – विदर्भ में अमरावती, यवतमाल, वर्धा, नागपुर, चंद्रपुर एवं बुल्ढ़ाना तथा मराठवाड़ा में नांदेड़, उस्मानाबाद, लातूर एवं जालना के लगभग 2,503 गांवों में रहने वाले डेरी किसानों से दूध संकलित किया जा रहा है ।
पारदर्शी प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रानिक वेइंग/परीक्षण सुविधा स्थापित की गई जिसमें किसान वजन, गुणवत्ता का परिणाम तथा उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए दूध का मूल्य पता कर सकते हैं । प्रत्येक किसान को एक कंप्यूटरीकृत मुद्रित रसीद उपलब्ध कराई जाती है तथा वे सीधे अपने बैंक खातों में भुगतान प्राप्त करते हैं जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित होती है । यह बात उल्लेखनीय है कि इसके लगभग 30 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं और उनकी भागीदारी में वृद्धि करने के अधिक प्रयास किए जा रहे हैं ।
दूध उत्पादन में वृद्धि करने तथा डेरी किसानों की आय में अधिक वृद्धि करने के लिए राज्य के विभिन्न भागों से प्राप्त करके 319 गांवों के सदस्यों को उत्तम गुणवत्ता का पशु आहार उपलब्ध कराया जा रहा है तथा 265 गांवों के सदस्यों को किफायती मूल्यों पर खनिज मिश्रण उपलब्ध कराया जा रहा है । हरे चारे को साइलेज के रूप में संरक्षित करना गोवंशीय पशुओं को गुणवत्तापूर्ण चारे की नियमित आपूर्ति विशेषकर गर्मियों के दौरान सुनिश्चित करने का सर्वोत्तम विकल्प है जिसके लिए, किसानों को साइलेज निर्माण में प्रशिक्षित किया जा रहा है । उपभोक्ताओं को तरल दूध उपलब्ध कराने के अतिरिक्त, मदर डेरी ने उत्पादों जैसे दही, मिष्टी दोई/योगहर्ट, छाछ, तड़का छाछ, घी, ऑरेंज बर्फी, मिठाई, फ्लेवर्ड दूध, मिल्क शेक, टेट्रा लस्सी, लस्सी फ्रेश, आईसक्रीम, मक्खन, पनीर, चीज़, डेरी वहाइटनर, यूएचजी दूध, यूएसटी क्रीम, सफल उत्पाद एवं धारा खाद्य तेल की शुरूआत की है । इसके मूल्य वर्धित उत्पादों की दैनिक बिक्री 6,800 किग्रा के स्तर तक पहुंच गई ।
इस परियोजना के अंतर्गत, चारा विकास गतिविधि सहित पशुधन फार्म विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (एमएएफएसयू) तथा एनडीडीबी ने एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें पूरे महाराष्ट्र में एमएएफएसयू के फार्मों पर वैज्ञानिक तौर पर प्रबंधित गुणवत्ता युक्त चारे के उत्पादन तथा एथनो वेटनरी औषधीय पादप की गतिविधियां शामिल हैं । एमएएफएसयू और एनडीडीबी ने किसानों एवं अन्य हितधारकों को चारा उत्पादन एवं संरक्षण प्रौद्योगिकियों तथा एथनो वेटनरी औषधीय पादपों का प्रदर्शन उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने, देशी नस्लों को उन्नत बनाने हेतु पशुधन की उत्पादकता में बढ़ाने, डेरी एवं डेरी कंपोजिट उत्पादों को विकसित करने, पोषण उद्देश्य हेतु न्यूट्राश्युटिकल्स का विकास करने, कस्टमाइज्ड डेरी उत्पादों का विकास करने, फार्म प्रबंधन प्रक्रियाओं तथा अन्य अनुसंधान/विकास की गतिविधियों को बढ़ावा देने की भी सहमति व्यक्त की है।
एनडीडीबी ने ऑल इंडिया रेडियो के सहयोग से रेडियो संवाद – विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्र के डेरी किसानों के लिए एक जागरूकता श्रृंखला की शुरूआत की है । प्रत्येक मंगल एवं शुक्रवार को वैज्ञानिक डेरी पशु प्रबंधन से संबंधित विषयों पर नागपुर, जलगांव, औरंगाबाद, उस्मानाबाद एवं नांदेड रेडियो स्टेशनों पर 30 मिनट का कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है । एनडीडीबी के विषय विशेषज्ञ इन सत्रों को संचालित कर रहे हैं जिसमें डेरी किसान विशेष उत्सुकता दिखा रहे हैं ।
सफलता की कहानियां
मदर डेरी ने डेरी किसानों को सहयोग दिया
आशीष विजयकुमार भोसले (27), मराठवाड़ा के लातूर जिले का एक किसान, गहरे सदमे में था, जब निजी डेरी, जो उससे और गांव के अन्य कई किसानों से दूध खरीदता था, ने देय राशि का भुगतान किए बिना ही अचानक व्यवसाय बंद कर दिया । इस घटना ने उसके गांव के डेरी किसानों पर एक छाप छोड़ी और इसके साथ ही उसमें से अधिकांश किसानों ने दूध का व्यवसाय छोड़ दिया। तीन वर्ष पूर्व, जब मदर डेरी ने इस क्षेत्र में संचालनों की शुरूआत की, आशीष, एक कृषि स्नातक, को गाय खरीदने तथा मदर डेरी से जुड़ने के लिए अपने परिवार के 10 सदस्यों को मनाना पड़ा । वर्तमान में, वह लगभग 80 लीटर दूध उपलब्ध करा रहा है । उसने कहा “एक दुग्धकाल की अवधि में ही मैंने रू. 1.75 लाख कमाए । इससे मेरा आत्मबल बढ़ा और तीन वर्ष के अंदर, अब, मेरे पास 10 गाय एवं सात भैंसे हैं ।” अब, उसने एक नए पशुशाला का निर्माण किया, वह एक एकड़ भूमि पर चारे की खेती कर रहा है तथा उसने चारा कटाई की मशीन खरीदी है । वह अपने पशु झुंड में पशु की संख्या बढ़ाकर 40 करना चाहता है तथा अब किसी रोजगार की तलाश नहीं कर रहा है।
लॉकडाउन के दौरान भी डेरी ने निरंतर आय उपलब्ध कराया
भैया प्रकाशराव चौधरी, अमरावती में दिघरगव्हान गावं के एक निवासी, के पास केवल एक गाय थी और वह केवल 4 लीटर दूध की बिक्री करता था, जब वह मदर डेरी से जुड़ा था । परंतु, अब उसके पास छह गाय है और प्रत्येक भुगतान चक्र में रू. 1,100 से अधिक कमाता है । 36 वर्षीय चौधरी बताता है कि मदर डेरी ने आहार संतुलन कार्यक्रम के बारे में जानकारी प्राप्त करने में उसकी मदद की । इससे दूध उत्पादन लागत में कमी लाने में मदद मिली । अपने मुनाफे में अधिक वृद्धि के लिए उसने अपने खेत पर हरे चारे का उत्पादन करना और अपने पशुओं को खनिज मिश्रण खिलाना शुरू किया । इन सभी प्रयासों से दूध उत्पादन में वृद्धि हुई, इसने प्रतिदिन 32 लीटर के स्तर को पार कर लिया है । उसने कहा, “कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान सभी निजी डेरियों ने अपने संचालनों को बंद कर दिया, परंतु मदर डेरी क्रियाशील रही जिसके कारण दूध की बर्बादी नहीं हुई ।” चौधरी ने बताया, “हमें दूध के नियमित भुगतान मिलने से डेरी किसानों को महामारी की स्थिति से उबरने में मदद मिली’’।
प्रदीप की कहानी
44 वर्षीय प्रदीप रामदासजी तेलरंधे, वर्धा जिले के रेहकी गांव के एक निवासी, के पास कुछ महीने पहले तक केवल एक गाय थी । घरेलू उपभोग के बाद उसका परिवार 2 लीटर दूध की बिक्री करता था। मदर डेरी के नए खोले गए दूध संकलन केंद्र से गांव में उसके साथी किसानों दूध का उचित मूल्य मिलने तथा नियमित आय प्राप्ति होने के बाद उसकी डेरी व्यवसाय में रुचि बढ़ी । तेलरंधे बताता है कि उसने मदर डेरी एमपीपी पर दूध उपलब्ध कराना शुरू किया था और धीरे-धीरे, उसने अपनी आय में वृद्धि होने पर एक-एक करके पाँच गाय खरीदा । अब, वह अपने डेरी व्यवसाय से प्रतिदिन रू. 550 कमाता है जो पांच सदस्यों वाले परिवार के लिए प्रमुख आजीविका सहयोग है ।
सुनीता ने राह दिखाई
27 वर्षीय सुनीता तुलसीदास वंजारी एक धान उत्पादक किसान थी परंतु उसकी 2 एकड़ भूमि पर खेती प्राप्त से आय उसके छह सदस्य वाले परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं थी । इसलिए वह अपने भाई के कीटनाशक स्टोर में भी काम करती थी । इसके बावजूद भी, उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । जब मदर डेरी ने उसके गांव में दूध पूंलिंग केंद्र खोला, उसने डेरी व्यवसाय शुरू करने का निश्चय किया । उसने दो गाय खरीदा और अक्तूबर 2018 में इस एमपीपी पर दूध उपलब्ध कराना शुरू कर दिया । इस प्राप्त आय से उसने दो और गाय खरीदा । अब, प्रतिदिन लगभग 17 लीटर दूध उपलब्ध कराती है और प्रतिदिन रू. 500 कमाती है । इस आमदनी से उत्साहित होकर उसके परिवार के सभी सदस्यों ने चारे की खेती के अतिरिक्त, डेरी व्यवसाय प्रारंभ कर दिया । उन्होंने एक नए पशुशाला का निर्माण किया और वे आधे एकड़ भूमि पर चारे का उत्पादन कर रहे हैं जिससे उनका मुनाफा और अधिक बढ़ा है ।
प्रेरणा का नाम मंगला
मंगला जीवन बदन (45), चंद्रपुर जिले के धोरपा गांव की एक निवासी, के पास पाँच गाय थी जिसे उसने सरकारी योजना के अंतर्गत प्राप्त किया था । परंतु, प्रतिदिन दूध बेचने के लिए लम्बी दूरी तय करने की वजह से डेरी व्यवसाय में उसकी रुचि खत्म हो गई थी । इसके अलावा, दूध संकलन केंद्रों पर होने वाले कदाचार से उसने इस व्यवसाय में अपनी रुचि खो दी । परंतु, जबसे नए एमपीपी केंद्र की स्थापना हुई, उसे यह पता चला कि डेरी किसान पारदर्शी तरीके से भुगतान प्राप्त कर रहे हैं और उस आमदनी को सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर किया जा रहा है । उसने एक बार पुन: इस व्यवसाय के लिए कड़ी मेहनत करने के बारे में सोचा । समय पर भुगतान एवं पारदर्शी दूध संकलन प्रणाली से उसका मन बदला । व्यवसाय छोड़ने के बजाए, उसने पशुओं की संख्या बढ़ाकर 13 की और वर्तमान में वह प्रतिदिन लगभग 30 लीटर दूध उपलब्ध कराती है । वह प्रतिदिन रू. 1100 से अधिक कमाती है तथा समय में हुई बचत का उपयोग अपने घरेलू कार्यों के लिए करती है।